किवदंतियों के अनुसार पौराणिक काल में दूषण नाम के राक्षस ने उज्जैन नगरी में तबाही मचा दी थी। तब लोगों ने भगवान शिव से इस प्रकोप को दूर करने की विनती की। भगवान शिव ने दूषण का वध किया और नगरवासियों के आग्रह पर यहीं महाकाल के रूप में बस गए। मान्यता यह है कि बाबा भोलेनाथ ने दूषण के भस्म से अपना श्रृंगार किया था। इसलिए आज भी महादेव का भस्म से श्रृंगार किया जाता है। बता दें कि यह पहला ऐसा मंदिर है जहां भगवान शिव की दिन में 6 बार आरती की जाती है। लेकिन दिन की शुरुआत भस्म आरती से ही होती है।
जो महाकाल का भक्त, काल भी कुछ नहीं बिगाड़ सकता
एक महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि भगवान शिव को भस्म धारण करते हुए केवल पुरुष ही देखते है। महिलाओं को उस वक्त घुंघट लेना अनिवार्य है, जिन पुरुषों ने बिना सीला हुआ सोला पहना हो वही भस्म आरती से पहले भगवन शिव को को जल चढ़ाकर छूकर दर्शन कर सकते है।कहा जाता है कि जो महाकाल का भक्त है उसका काल भी कुछ नहीं बिगाड़ सकता, साथ ही प्रत्येक वर्ष के हर एक त्योहार बाबा के प्रांगण में ही सर्वप्रथम मनाने की परंपरा है।
नाम से जुड़ा है रहस्य
कहते हैं महाकाल का शिवलिंग तब प्रकट हुआ था, जब राक्षस को मारना था। उस समय भगवान शिव राक्षस के लिए काल बनकर आए थे। फिर उज्जैन के लोगों ने महाकाल से वहीं रहने को कहा, और वह वहीं स्थापित हो गए। ऐसे में शिवलिंग काल के अंत तक यही रहेंगे इसलिए भी महाकालेश्वर नाम दे दिया गया।