लाखो की संख्या में आएंगे श्रद्धालु
मूलभूत सुविधाओं के अपर्याप्त इंतजाम के बीच कैसे सफल होगाआयोजन
उज्जैन पं. प्रदीप मिश्रा के मुख से 4 से 10 अप्रैल तक होने वाली श्री विक्रमादित्य शिवमहापुराण कथा को सुनने बड़ी संख्या में श्रद्धालु उज्जैन पहुंच चुके है और कई ने पांडाल में कुछ दिन पूर्व से ही स्थायी डेरा डाल दिया है। लेकिन इनके भोजन, पेयजल और प्रसाधन के इंतजाम पर्याप्त रूप से नही दिख रहे है। भोजन और पेयजल की व्यवस्था अब तक कथा स्थल पर नहीं है। जिस हिसाब से श्रद्धालु की संख्या है ।ग्रीष्मकाल में यह जल सुविधा क्या पर्याप्त साबित होगी ? यह सभी जानते है यह विचारणीय है।
कथा स्थल तक पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं की जेब पर…
कथास्थल नगर से दूर होने से अगर व्यवस्था पर्याप्त नहीं हुई तो श्रद्धालुओं को मुसीबतों का सामना करना पड़ा सकता है जहां तक प्रश्न यातायात व्यवस्था का है तो शहर में आम दिनों में जाम लग जाता है परंतु आयोजन समिति की रजामंदी से बने यातायात प्लान और अपर्याप्त इंतजाम मेरी कमी दिख रही है ऐसा लग रहा है कि सुबह से रात तक आयोजन स्थल सहित शहर में महा जाम लगा रहेगा।
खासकर कथा स्थल पर पहुंचने वाले श्रद्धालुओं के लिए यातायात के साधनों की व्यवस्था भी उपलब्ध कराना दिए जरूरी काम है। कुल मिलाकर कथा स्थल तक पहुंचने के लिए धर्मालु जनों को उपलब्ध संसाधनों की कमी की वजह से आर्थिक नुकसान उठाना पड़ेगा ।
प्रसाधन के संसाधनों की कमी
प्रसाधन तो अंगुली पर गिनने जा सकते है जो कि संभावित लाखों श्रद्धालुओं के मान से ऊंट के मुंह में जीरे के समान प्रतीत होते है। आखिर इस अपर्याप्त इंतजाम के बावजूद आयोजन समिति अपनी पीठ कैसे थपथपा रही है यह विचारणीय है। कहीं ऐसा ना हो की मोदी जी के स्वच्छता अभियान को आयोजन समिति की नासमझी की वजह से पलीता लगे
समितियों में समन्वय का है अभाव
आयोजन को लेकर समितियां भी पर्याप्त मात्रा में गठित नहीं हुई है वही उप समितियों में भी समन्वय का अभाव देखा जा रहा है। हालांकि जिला कलेक्टर ने इस आयोजन को लेकर बैठक की है और व्यवस्थाओं को लेकर आवश्यक दिशा निर्देश दिए हैं जिसमें भोजनशाला को लेकर विशेष निर्देश दिए थे। आयोजन समिति के द्वारा कलेक्टर कुमार पुरुषोत्तम के निर्देश पर भोजनशाला को सड़क से अधिक दूरी पर बनाया गया है जिससे अव्यवस्था फैलने से बचा जा सकेगा
बैठक व्यवस्था को लेकर कोई स्पष्टता नहीं
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वीआईपी व्यवस्था को खत्म करके बेहतर कार्य किया है लेकिन अब तक संतों, महंतों, महामण्डलेश्वरों, जनप्रतिनिधियों, पत्रकारों की बैठक व्यवस्था को लेकर कोई स्थिति स्पष्ट नहीं की गई है और यह सार्वजनिक आयोजन की अपेक्षा निजी आयोजन लग रहा है जहां पर जनप्रतिनिधियों, पत्रकारों, संतों, महंतों, महामण्डलेश्वरों आदि से समिति के समन्वय, सामंजस्य, संवाद, संपर्क का अभाव स्पष्ट नजर आ रहा है। प्रकाश शर्मा कथा को स्वयं की राजनीतिक जमीन तैयार करने के लिये बनाने का प्रयास कर रहे है जबकि अहंकार और सभी के प्रति असम्मान का उनका भाव उनके वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य को बदल न दें। यह भविष्य के गर्त में है लेकिन विराट आयोजन से वरिष्ठ नेताओं, संत समुदाय, पत्रकारों की दूरी निश्चय ही विचारणीय है। अब भी समय है कि इसमें सुधार किया जाए। अन्यथा कथा तो महादेव की है और वे भी इसे सम्पन्न कराएंगे भी। हम तो निमित्त मात्र है।