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श्री महाकाल लोक के सम्पूर्ण दर्शन

आखिर कैसे होगा मैली शिप्रा में कार्तिक स्नान

उज्जैन। उज्जैन शहर की जीवनरेखा मानी जाने वाली शिप्रा नदी इन दिनों बदहाली का शिकार है। नदी में शहर से निकलने वाले नालों और नालियों का पानी मिलने से पानी खराब हो रहा है, तो दूसरी ओर इंदौर की और से आने वाली कान्ह नदी का दूषित जल शिप्रा में मिलने से इसका पानी काला और प्रदूषित हो गया है। हालात ये हैं कि अब शिप्रा का यह जल आचमन योग्य भी नहीं बचा है। ऐसे में शहरवासियों और हर दिन शिप्रातट पर आने वाले लाखों श्रद्धालुओं की आस्था से खिलवाड़ हो रहा है। हालांकि इंदौर की और से आने वाले कान्ह के दूषित जल को रोकने के लिए करीब सौ करोड़ की लागत से कान्ह डायवर्शन योजना बनाई गई थी, लेकिन यह योजना सफल नहीं हो सकी और शिप्रा में कान्ह का दूषित जल मिलना आज भी जारी है।

करीब तीन वर्ष पहले जब कान्ह नदी

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उल्लेखनीय है कि कान्ह डायवर्शन योजना कान्ह नदी के करीब पांच क्यूसेक जल को डायवर्ट करने के लिए बनाई गई थी, लेकिन मौजूदा समय में त्रिवेणी की और कान्ह का इससे अधिक दूषित जल बहकर आ रहा है। करीब तीन वर्ष पहले जब कान्ह नदी के दूषित जल से रामघाट से मंगलनाथ के क्षेत्र तक शिप्रा का पानी प्रदूषित हो गया था उस समय जल संसाधन विभाग ने त्रिवेणी पर पक्के स्टाप डेम को तैयार करने का प्रस्ताव बनाया था लेकिन आज तक यह स्टाप डेम अस्तित्व में नहीं आ सका। जिसके कारण त्रिवेणी पर मिट्टी से बनाया गया कच्चा स्टाप डेम ही मौजूद है। यह डेम आए दिन कान्ह का पानी ओवरफ्लो होने से टूटता रहता है। जिसके कारण शिप्रा नदी में कान्ह का दूषित जल मिलना भी जारी रहता है।
कान्ह के पानी को रोकने के लिए जलसंसाधन विभान ने करीब चार सौ पैंसठ करोड़ से नहर बनाने की योजना भी बनाई थी

दूसरी और कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को बड़े पैमाने पर श्रद्धालु स्नान के लिए उमड़ेंगे

लेकिन यह योजना भी कागजों पर सिमट कर रह गई। वर्तमान में हालात ये हैं कि शिप्रा में देवास और उज्जैन शहर के नालों के पानी का मिलना जारी है, तो दूसरी ओर कान्ह नदी का पानी भी त्रिवेणी पर बने अस्थायी स्टापडेप को तोड़कर शिप्रा में मिल रहा है। शिप्रा नदी की इस दुर्दशा को लेकर जहां राजनेता मौन हैं वहीं अधिकारियों के कानों पर जूं तक नहीं रेंग रही है।
देवप्रबोधिनी एकादशी के बाद यह माना जा रहा था कि जिम्मेदार शिप्रा में होने वाले प्रदूषण को रोकने के लिए कोई कदम जरूर उठाऐंगे लेकिन ऐसा होता नज़र नहीं आ रहा है। दूसरी ओर कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को बड़े पैमाने पर श्रद्धालु स्नान के लिए उमड़ेंगे। हर बार की तरह यदि स्नान के लिए यदि शिप्रा में नर्मदा नदी का जल भी छोड़ा जाता है तो कान्ह नदी के प्रदूषित जल और नालों का पानी मिलने से वह पानी भी प्रदूषित हो जाएगा। ऐसे में यदि शिप्रा में प्रदूषित जल को मिलने से नहीं रोका जाता है तो आस्थावानों को उसी जल में स्नान करना पड़ेगा जो जल आचमन योग्य भी नहीं रहा है। यदि ऐसा होता है तो लाखों लोगों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ तो होगा ही साथ ही लोगों की आस्था को भी चोट पहुंचेगी।

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