ग्वालियर। सुहाग की लंबी आयु और संतान के सुखी जीवन व घर में सुख समृद्धि के लिए रखे जाने वाला छठ पर्व की शुरूआत हो गई। शुक्रवार को महिलाओं ने छठ पर्व के पहले दिन नहाय-खाय से प्रारंभ किया। शनिवार की शाम को भगवान सूर्य की आराधना के बाद 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू होगा जो 20 नवंबर की सुबह भगवान सूर्य की पूजा अर्चना के बाद ही पारण होगा। ज्योतिषाचार्य सुनील चोपड़ा का कहना है कि चार दिनों तक चलने वाला यह महापर्व उषा, प्रकृति, जल, वायु और सूर्यदेव की बहन षष्ठी माता को समर्पित है।
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छठ व्रत को कठिन व्रतों में एक माना गया है
इसमें विशेष रूप से सूर्य देव को अर्घ्य देने की परंपरा है और यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। आज भी लोग भक्तिभाव और पूर्ण श्रद्धा के साथ इसे मनाते हैं। इसमें व्रती पूरे 36 घंटे का निर्जला व्रत रखती हैं। इसलिए छठ व्रत को कठिन व्रतों में एक माना गया है। छठ पर्व के दूसरे दिन शनिवार को खरना होता है, इस दिन सूर्योदय सुबह 6 बजकर 46 मिनट और सूर्यास्त शाम 5 बजकर 26 मिनट पर होगा। खरना के दिन व्रती केवल एक ही समय शाम में मीठा भोजन करती है। इस दिन मुख्य रूप से चावल के खीर का प्रसाद बनाया जाता है, जिसे मिट्टी के चूल्हे में आम की लकड़ी जलाकर बनाया जाता है।
19 नवम्बर को छठ पूजा का तीसरा दिन महत्वपूर्ण
इस प्रसाद को ग्रहण करने के बाद व्रती का निर्जला व्रत शुरू हो जाता है। इसके बाद सीधे पारण किया जाता है। 19 नवम्बर को छठ पूजा का तीसरा दिन महत्वपूर्ण होता है। इस दिन घर-परिवार के सभी लोग घाट पर जाते हैं और डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देता है। इस साल छठ पूजा का अस्त चलगामी अर्घ्य सूर्यास्त शाम 5 बजकर 26 मिनट पर होगा। इस दिन सूप में फल, ठेकुआ, चावल के लड्डू आदि प्रसाद को सजाकर और कमर तक पानी में रहकर परिक्रमा करते हुए अर्घ्य देने की परंपरा है। छठ पूजा अंतिम और चौथा दिन यानी सप्तमी तिथि को उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा है। ऊषा अर्घ्य सोमवार 20 नवंबर को होगा, इस दिन सूर्योदय सुबह 6 बजकर 47 मिनट पर होगा। इसके बाद व्रती प्रसाद ग्रहण कर पारण करती है।