उज्जैन। वर्षाकाल में उज्जैन का प्राकृतिक सौंदर्य शहर से 12 किलोमीटर दूर कालियादेह महल स्थित 52 कुंड पर निखर आया है।
कलकल बहती शिप्रा नदी, उसमें अटखेलियां करते लोग और आसपास हरे-भरे पेड़ों से आच्छादित वातावरण पर्यावरणप्रेमियों के मन को खूब भा रहा है। यहां बड़ी संख्या में पर्यावरणप्रेमी पिकनिक मनाने पहुंचे। कइयों ने यहां के खूबसूरत नजारों को अपने मोबाइल, वीडियो कैमरे में कैद किया और फिर इंटरनेट साइट पर साझा किया। चौंकाने वाली बात ये रही कि यहां सुरक्षा के इंतजाम नहीं थे। बता दें कि अच्छी बरसात होने से उज्जैन में चहुंओर हरियाली की चादर बिछ गई है। जीवाजी वेधशाला के अनुसार शहर में इस वर्षाकाल में अब तक 679 मिलीमीटर बरसात हो चुकी है। बात जिले की करे तो अब तक 515 मिलीमीटर बरसात हो चुकी है। ये आंकड़ा गत वर्ष इस अवधि में हुई 447 मिलीमीटर बरसात से ज्यादा है।
पहले यह ब्रह्मकुण्ड के नाम से जाना जाता था
बता दें कि कालियादेह भवन उज्जैन से उत्तर की ओर 6 मील की दूरी पर क्षिप्रा नदी में एक द्वीप के रूप में स्थित है। मुसलमानों के आगमन से पहले यह ब्रह्मकुण्ड के नाम से जाना जाता था। इसमें स्नान के लिए घाट बने थे तथा पीछे की तरफ मंदिर था। इस पुराने भवन को पत्थर के एक बाँध से पश्चिम की ओर जोड़ा गया है। मालवा का खिलजी सुल्तान नासिर शाह ने लगभग १५०० ई. में यहाँ एक भवन निर्माण करवाया, जो ग्रीष्म ॠतु में शीतलता प्रदान कर सके। यह भवन वास्तुकला के माण्डु शैली का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। इसमें नदी की पानी को कई हौजों में भरकर २० फीट कह ऊँचाई से उत्कीर्ण पत्थरों पर पतली धाराओं के रूप में गिराने का प्रबंध किया गया था। इससे नदी के ऊपर बना चबूतरा शीतल रहता था। भवन में छोटी छतरियाँ तथा अन्य रचनाएँ बाद में, खास तौर पर मुगल काल में जोड़ी गई है। हाल में भी इन संरचना मौलिक रूप में कई परिवर्तन किये गये हैं। ‘कालियादेह महल’ अब खंडहरों में बदल गया है, और यह नदी में जो कुंड बने हुए हैं उन्हें आज 52 कुंड के नाम से जाना जाता है। ये पत्थरों से निर्मित है इनमें एक कुंड से दूसरे कुंड में पानी जाता है ऐसे यहां एक-दूसरे को जोड़ते हैं यहाँ बहुत सुन्दर नजारा लगता है, खासकर वर्षा ऋतु में।