(निरुक्त भार्गव)
“मास्टर प्लान” के प्रावधानों में सिंहस्थ महापर्व की व्यवस्थाओं के अलावा मुख्य रूप से उज्जैन और खासकर उज्जैन शहरी क्षेत्र, जिसे ‘उज्जैन उत्तर’ के रूप में जाना जाता है, के भविष्य के विकास संबंधी पहलू शामिल हैं। लेकिन, दिलचस्प बात यह है कि प्रभावशाली भाजपा नेताओं के साथ-साथ उज्जैन उत्तर के जनप्रतिनिधियों ने भी उज्जैन दक्षिण क्षेत्र से संबंधित प्रावधानों पर आपत्ति जताने में अधिक प्रदर्शित की है। बताया जा रहा है इन्हीं सब उधेड़बुन के चलते “उज्जैन मास्टर प्लान-2035” लंबित हो गया है।
‘सिंहस्थ महापर्व’ का आयोजन सबसे अधिक उज्जैन उत्तर क्षेत्र (लगभग 60 प्रतिशत), घट्टिया तहसील क्षेत्र (20 प्रतिशत) और उज्जैन दक्षिण क्षेत्र (20 प्रतिशत) में होता है। मोटे तौर पर क्षिप्रा नदी के पश्चिमी किनारे पर स्थित इन क्षेत्रों में महात्माओं, साधुओं, सन्यासियों, संतों, अखाड़ों, खालसों आदि के शिविर लगाए जाते हैं। पूरे शहर के बाहरी इलाके में सैटेलाइट टाउन, पार्किंग स्थल जैसी अस्थायी सुविधाएं मुहैया करवाई जाती हैं। ये एक सच्चाई है कि अनाधिकृत निर्माणों और अवैध अतिक्रमणों के मद्देनजर प्रशासनिक अफसरों ने इन पारंपरिक क्षेत्रों में लगने वाले सिंहस्थ शिविर क्षेत्रों का विस्तार आगर रोड, उन्हेल रोड, सदावल रोड, बड़नगर रोड और चिंतामन रोड तक कर दिया।
सिंहस्थ महापर्व-1992 के दौरान ‘अतिरिक्त’ भूमि को अधिसूचित करने सरीखा बड़ा मुद्दा नहीं था, लेकिन सिंहस्थ महापर्व-2004 के आयोजन के दौरान समस्या सामने आई। सिंहस्थ महापर्व-2016 के दौरान यही समस्या काफी बढ़ गई क्योंकि महापर्व की मेजबानी के लिए ‘आरक्षित’ लगभग 250 हेक्टेयर भूमि पर अवांछित निर्माण कुकुरमुत्ते की तरह उग आए और जमीनों पर अवैध रूप से कब्जा कर लिया गया। ‘सिंहस्थ अधिनियम’ के प्रावधानों के अनुसार सिंहस्थ पड़ाव क्षेत्र में किसी भी निजी या व्यावसायिक संरचना के निर्माण पर पूर्ण प्रतिबंध है, बावजूद इसके ये सब खुले आम किया गया।
पिछले 30 वर्षों के दौरान सिंहस्थ शिविर स्थलों पर दर्जनों आवासीय कॉलोनियां उग आई हैं, लेकिन न तो ‘प्रशासन’ ने अनाधिकृत निर्माण और अवैध अतिक्रमण हटाने पर ध्यान दिया और न ही ‘नगर एवं ग्राम नियोजन विभाग’ ने उन्हें 2020 में समाप्त हुए मास्टर प्लान के प्रावधानों से ‘विलोपित’ किया। हद तो ये है कि मास्टर प्लान-2035 में अवैध कब्जे और बेजा निर्माण वाली भूमि को सिंहस्थ पड़ाव क्षेत्र के रूप में चिन्हित किया गया है। इतनी बड़ी गड़बड़ी पर उज्जैन उत्तर क्षेत्र से जुड़ा कोई भी जनप्रतिनिधि अथवा सत्ता से जुड़ा असरदार व्यक्ति मुंह खोलने को राजी नहीं है!
बजाय इसके, उनमें से अधिकांश ने उज्जैन दक्षिण के अंतर्गत आने वाले उज्जैन कस्बा, जीवनखेड़ी, सांवराखेड़ी, दाउदखेड़ी आदि गांवों की ‘आवासीय’ भूमि को ‘कृषि’ भूमि में परिवर्तित करवाने का बाकायदा एक अभियान छेड़ दिया! अब उनका दावा है कि इस तरह के उनके प्रयास सौ फीसदी उज्जैन के ‘हित’ में हैं। हालांकि लोगों का कहना है कि उन्होंने ये सभी चालें खुद के चहेते बिल्डरों के हितों की रक्षा के लिए चली गई हैं! साथ-ही उन कॉलोनाइजरों के हितों को चोट पहुंचाने के लिए भी वे परदे के पीछे लगातार सक्रिय रहे हैं जिन्हें वे ‘नापसंद’ करते हैं! सबरी भूमि गोपाल वाले ‘हैवीवेट’ मंत्री मोहन यादव से हिसाब-किताब चुकता करने के बरक्स भी तमाम विवादों को जोड़कर देखा जा रहा है!
‘पब्लिक डोमेन’ में चर्चाएं हैं कि पिछले दो दशकों के दौरान जो अवैध कॉलोनियां विकसित की गईं, उन्हें भाजपा के छह बार के उज्जैन उत्तर क्षेत्र के विधायक और पूर्व कैबिनेट मंत्री पारस जैन का संरक्षण प्राप्त था! उनके विरोधियों यह भी कहते हैं कि ऐसे इलाकों में सड़क, बिजली जैसी सभी बुनियादी सुविधाएं ‘विधायक निधि’ से और उज्जैन नगर निगम के माध्यम से प्रदान की गईं! उन्हीं का ये आरोप है कि जैन ने प्रशासन को ‘उज्जैन शहर’ के अधिकांश हिस्सों में सड़क चौड़ीकरण की कवायद नहीं करने के लिए मजबूर किया, यह मानते हुए कि इससे उनकी चुनावी संभावनाओं को नुकसान पहुंच सकता है!
विधायक पारस जैन ने स्वीकार किया कि हालांकि महावीर नगर जैसे सिंहस्थ शिविर स्थलों पर अनाधिकृत निर्माण किए गए हैं, लेकिन अब वो भविष्य की आवश्यकताओं के मद्देनज़र चीजों को देखना चाहते हैं। वे सीधे-सीधे पूछते हैं कि उन अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की गई जिनके कार्यकाल में अनाधिकृत निर्माण और अवैध कब्जे हुए। उनके जैसे वरिष्ठ विधायक की मांग है कि जैसे ही इस तरह के गैर-कानूनी काम किए जाएं, संबंधित अधिकारियों को तुरंत दंडित किया जाना चाहिए। जैन यह बताना नहीं भूलते हैं कि उनका उज्जैन दक्षिण की जमीनों से कोई लेना-देना नहीं है। “मेरी रुचि केवल उज्जैन, यहां के लोगों और संत समुदाय के हितों में है,” उन्होंने जोड़ा।
बरसात की खेंच लम्बी हो चली है: 7 लाख की जनसंख्या वाले समूचे उज्जैन शहर की प्यास बुझाने और आस-पास की कृषि भूमि को तर करने के लिए जितनी बारिश की सालाना औसत जरूरत होती है, उसकी आधी ही उपलब्धि अब तक हो पाई है। शहर खुदा पड़ा है: टाटा कंपनी वालों और नगर निगम की मेहरबानी से। ‘श्री महाकाल लोक’ के अव्यवस्थित और अधूरे विकास कार्यों ने लोगों का जीना मुहाल कर रखा है! तिस पर महाकाल जी की सवारियों के दौरान साधारण लोगों के साथ बद्सलुकियों का दौर रुकने का नाम नहीं ले रहा है! क्षिप्रा जी की व्यथाएं तो अनगिनत हैं! ‘विकास’ के मॉडल भूल-भुलैया साबित हो रहे हैं! वोट-नोट के फेर ने नेता नगरी और सरकारी बाबुओं को किंकर्तव्यविमूढ़ कर दिया है! ऐसे वक्त जब विधानसभा और लोकसभा चुनाव सामने हैं, उज्जैन का मास्टर प्लान कराह रहा है…..