देवास। जिले के पीपलरावां क्षेत्र में प्रसिद्ध मां बिजासनी माता मंदिर ग्राम इकलेरा माताजी पर मिले बीमार तेंदुए के स्वास्थ्य में लगातार सुधार हो रहा है। तेंदुए का प्रारंभिक उपचार इंदौर के चिड़ियाघर में होने के बाद काफी दिनों से वन विभाग के दौलतपुर केंद्र पर उपचार किया जा रहा है। तेंदुआ सामान्य रूप से भोजन भी कर रहा है और अब जल्द ही जबलपुर के डाक्टर रक्त जांच के लिए आएंगे। अच्छी बात यह है कि इस बीमारी से ठीक होने वाला यह तेंदुआ विरला है। यदि तेंदुए की जांच में वायरस खत्म होने की पुष्टि होती है, तो बिल्ली प्रजाति के अन्य जानवरों में इस बीमारी के होने पर उपचार का यह एसओपी ( स्टैंडर्ड आपरेटिंग प्रोसिजर ) तय होगा। बता दें कि इसी वर्ष 29 अगस्त को इकलेरा माताजी गांव के पास अचानक सुस्त तेंदुआ आ गया था।
https://shrimahakalloktv.com/?p=5545
लोगों ने उसकी सवारी तक कर डाली
लोग पहले तो डरे, लेकिन बाद में उसकी सुस्ती देख लोगों ने उसकी सवारी तक कर डाली। फिर वन विभाग देवास और उज्जैन के रेस्क्यू दल ने तेंदुए को पिंजरे में कैद कर उपचार के लिए इंदौर भेज दिया था। प्रारंभिक दिनों में तेंदुए की हालत बेहद गंभीर हो गई थी और इंदौर के चिड़ियाघर में उसका उपचार किया। हालत में सुधार के बाद सोनकच्छ के पास दौलतपुर स्थित वन विभाग के केंद्र में भेज दिया था। तेंदुए के कुछ और ठीक होने के बाद बड़े पिंजरे में रखा गया है। जांच में पता चला था कि तेंदुए को बिल्ली और श्वान प्रजाति के जानवरों में होने वाली केनाइन डिस्टेंपर बीमारी हुई थी। यह भी माना जा रहा है कि इस बीमारी के बाद किसी जानवर के जीवित बचने का यह पहला मामला है। हालांकि इसकी पुष्टि नहीं हो पाई। इंदौर चिड़ियाघर के डा. उत्तम यादव ने बताया कि इस बीमारी में रिकवरी की संभावना बेहद कम रहती है। यह नर्वस सिस्टम डिसआर्डर होता है और इस हालत से उसका ठीक होना एक चमत्कार की तरह है।
एंटीजन टेस्ट होने के बाद पता चलेगा कि वायरल है या नहीं
डा. यादव ने बताया कि उपचार करीब एक माह से बंद है और अब उसके एंटीजन टेस्ट होने के बाद पता चलेगा कि वायरल है या नहीं। नर्व कितना नुकसान हुआ है यह भी देखा जाएगा, साथ ही फिजिकल टेस्ट भी होगा, जिसमें उसकी चाल, शिकार करने की क्षमता आदि परखी जाएगी। तेंदुए के पूरी तरह ठीक होने की स्थिति में इस बीमारी से उपचार का एसओपी तय हो सकता है।
इस बीमारी से मरे थे दर्जनों शेर
केनाइन डिस्टेंपर वायरल बीमारी बिल्ली और श्वान प्रजाति में होती है। गुजरात में वर्ष 2012-13 में दर्जनों शेर इस बीमारी में मारे गए थे। खिवनी अभयारण्य अधीक्षक विकास माहोरे ने बताया कि आमतौर पर केनाइन डिस्टेंपर से पीड़ित जानवर का बचना बेहद मुश्किल होता है। पूर्व में इस बीमारी से कई शिकारी जानवरों की मौत हो चुकी है।
रक्त का सैंपल लेकर जांच के लिए भेजने की अनुमति मिल गई
डीएफओ प्रदीप मिश्रा ने बताया कि मुख्यालय से तेंदुए को ट्रेंकुलाइज कर रक्त का सैंपल लेकर जांच के लिए भेजने की अनुमति मिल गई है। जांच के लिए जबलपुर से डाक्टर आएंगे। जांच के बाद आगे की प्रक्रिया तय की जाएगी।